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सेहत की पूर्ण गारण्टी सूर्य नमस्कार के लाभ ही लाभ वो भी बिना Side Effect

सेहत की पूर्ण गारण्टी सूर्य नमस्कार के लाभ ही लाभ वो भी बिना Side Effect. मैं आप सबको विश्वास दिलाती हूॅ कि सूर्य नमस्कार सेहत की पूर्ण गारण्टी है सूर्य नमस्कार के सूर्य नमस्कार के लाभ ही लाभ है और वो भी बिना Side Effect. सभी को मालूम हैं कि 21 जून को सम्पूर्ण विश्व में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जायेगा। योग एक दिव्य औषधि है जो मनुष्य के व्यक्तित्व को आकर्षक बनाती है। सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है। सूर्य नमस्कार उत्साह व स्फूर्ति उत्पन्न करते हुये उसकी कार्यक्षमताओं में वृद्धि करता है। । क्योंकि सूर्य की किरणों में स्वस्थता व नीरोगिता लाने की अपार शक्ति है। सूर्य नमस्कार में रोग कीटाणुओं को नष्ट करने की अपार क्षमता है। हमारे ऋषि मुनियों ने इसकी महत्ता को लाखों वर्ष पूर्व ही खोज लिया था। सूर्य नमस्कार, सूर्य उपासना, सूर्य योग, सूर्य यज्ञ आदि अनेक क्रियायें धार्मिक कर्मकाण्ड में सम्मिलित की गयी है। सूर्य नमस्कार के सूर्य नमस्कार के लाभ ही लाभ है और वो भी बिना Side Effect के।

ओम हिरण्मयेन पात्रेणसत्यस्याप्रिहितं मुखम।
तत् त्वं पूषन् अपावृणु सत्य धर्माय दृष्टयें।। (ईशावास्योपनिषद 15)

नोट- सर्वप्रथम मैं आप सभी पाठकों से अनुरोध करना चाहूॅगी कि सूर्य नमस्कार के इस लेख -आर्टिकल की अवधि थोड़ी लम्बी हो जायेगी। लेकिन मेरी आपसे ये विनती है कि आप सूर्य नमस्कार का अभ्यास करें या ना करें। परन्तु एक बार सूर्य नमस्कार के इस लेख को अवश्य पढ़े। क्योंकि इससे पहले सूर्य नमस्कार के बारे में इतने विस्तार से किसी ने नहीं बताया होगा।

Content

  • सूर्य नमस्कार के 12 नाम
  • सूर्य नमस्कार के मन्त्र-अर्थ, करने की विधि एवं सावधानियां
  • सूर्य नमस्कार के लाभ
  • ध्यान रखने योग्य बातें
  • प्रारम्भ में नये लोग सूर्य नमस्कार कैसे करें
  • निष्कर्ष Conclusion

हमारी शारीरिक शक्तियों की उत्पत्ति, स्थिति और विकास सब सूर्य देवता पर ही निर्भर करता है। जो लोग सूर्य उदय होने के बाद उठते है उनके स्वास्थ्य और जो लोग प्रातः काल सूर्य उदय होने से पूर्व सो कर उठते है उनके स्वास्थ्य में जमीन आसमान का फर्क रहता है। योग हमारी प्राचीन संस्कृति और सभ्यता का वरदान है, जो आज की पीढ़ी को वरदान स्वरूप मिला है। आजकल की भागदौड़ वाली जिन्दगी में हमारे पास अपने लिये ही समय नहीं है।

सूर्य नमस्कार कोई धार्मिक अनुष्ठान नहीं है यह अपने आप में स्वतंत्र है तथा व्यायामों और आसनों की एक भावमय श्रंखला है। इसको करने से शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक क्षमता बढ़ती है। यह विभिन्न आसनों और व्यायाम का समन्वय है जिससे शरीर के सभी अंगो-उपांगो का पूरा व्यायाम हो जाता है। पूरे शरीर का शुद्धिकरण होता है तथा सूर्य की ऊर्जा का संचार हमारे सम्पूर्ण शरीर पर होता है। सूर्य नमस्कार से बुद्धि, आयु, प्रज्ञा, तेज, धैर्य, शौर्य और बल की प्राप्ति तथा शरीर का तनाव समाप्त होता है। साथ ही मानसिक एकाग्रता, आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।

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सूर्य नमस्कार के लाभ ही लाभ

  • सेहत की पूर्ण गारण्टी।
  • रक्त संचार सामान्य रहता है। एकाग्रता एवं शक्ति प्रदान करता है।
  • उदर एवं अमाशय के दोषों को नष्ट कर उन्हें मजबूती प्रदान करता है।
  • मेरूदण्ड (रीढ़ की हड्डी) को लचीला बनाता है। रक्त की शुद्धता को बढ़ाता है। शरीर की अतिरिक्त चर्बी को घटाता है।
  • तनाव को कम करता है। रक्त में संचार बढ़ाता है, जिससे पाचन-तन्त्र सुचारू रूप से कार्य करता है।
  • मोटापे को नियंत्रित करता है।
  • पेट की चर्बी को कम करता है।
  • डायबिटीज-मधुमेह में राहत।
  • शरीर के पूरे सिस्टम को डिटॉक्स करता है।
  • वक्षस्थल और और फेफड़ों की शक्ति बढ़ाता है।
  • कंधो एवं पैरों की मॉंसपेशियॉं मजबूत होती है। स्वभाव में नम्रता और शालीनता आती है।
  • महिलायें अपने को आकर्षक और सुदर, सुडौल बना सकती है।
  • मासिक धर्म को रेगुलर करता है
  • सदा जवान बनाये रखता है। बुढ़ापे को पास नहीं आने देता।
  • कब्ज का दुश्मन है।
  • एक मात्र सूर्य नमस्कार ही है जिससे समस्त बीमारियों को नाश करता है।
  • सूर्य के समान तेजस्वी बनते है।

सूर्य नमस्कार के 12 नाम

  • प्रणाम आसन (Pranam Aasana – The Prayer Pose)
  • हस्त उत्तान आसन (Hasta Uttan Aasana – Raised Arms Pose)
  • पाद हस्त आसन (Pad Hast Aasana – Standing Forward Bend)
  • अश्व संचालन आसन (Ashwa Sanchalan Aasana – Equestrian Pose)
  • दंडासन (Dandasana – Staff Pose )
  • अष्टांग नमस्कार (Ashtanga Namaskara – Eight Limbed pose or Caterpillar pose)
  • भुजंगासन (Bhugangasan Cobra pose)
  • पर्वतासन (Parvataasana – Downward-facing Dog Pose)
  • अश्व संचालन आसन (Ashwa Sanchalan Aasana – Equestrian Pose)
  • पाद हस्त आसन (Pad Hast Aasana – Hand Under Foot Pose)
  • हस्त उत्तान आसन (Hasta Uttan Aasana – Raised Arms Pose)
  • प्रणाम आसन (Pranam Aasana – The Prayer Pose)

सूर्य नमस्कार के मन्त्र – अर्थ, करने की विधि एवं सावधानियां

  1. प्रणाम आसन (सामान्य सांस) ऊॅं मित्राय नमः – अनाहत चक्र – हे सम्पूर्ण विश्व के मित्र, नमन है।

    प्रथम स्थिति में मात्र आपस में हाथ को जोड़ लेना भर नहीं है। इस स्थिति में आने के लिये अपने दोनों पैरों को जोड़कर रखें। पांव की अंगुलियॉं फैली हुई हों। रीढ की हड्डी और सिर एक सीध में हो। छाती उभरी और पेट सहजता से अंदर हो। कंधा पीछे की ओर तो आंखे सामने एक जगह स्थिर हों। दोनों हाथ प्रणाम की और सभी अंगुलियां फैली हुयी नमस्कार की भाव भंगिमा में हो। कोहनी बाहर की ओर हो। इस स्थिति में सांस सामान्य स्थिति में रहना चाहिए।

    सावधानी

    रीढ़़, गर्दन और सिर को एक सीध में रखने का ख्याल नहीं रहता। खड़ें रहने में छाती दबी रहती है, जिससे प्राण का दौर हृदय और फेफड़े की ओर अवरूद्ध हो जाता है।

    2. हस्त उत्तान आसन (पूरक) ऊॅं रवये नमः – विशुद्धि चक्र – हे गति एवं शब्द करने वाले, नमन है।

    पहली स्थिति से सांस लेते हुये हाथों को ऊपर की ओर करें, दोनों हाथ कंधे की दूरी के बराबर फैले हुये हो। पहले स्पाइन को ऊपर की ओर खींचे, फिर कमर के निचले हिस्से से मुड़ते हुये पीछे जाएं। आपका सिर पीछे की ओर हो, हाथ और हथेली एक सीध में हो।

    सावधानी

    सर्वप्रथम गल्ती हाथों को आपस में मिलाकर पीछे ले जाने से हैं, ऐसा होने से छाती के हिस्से में जो उभार होना चाहिए, वो नहीं हो पाता इससे हृदय और फेफड़े को भी मजबूती मिलनी चाहिए वो नहीं मिलती। अधिकांशतः सबका घ्यान पीछे झुकने पर रहता है, जबकि हर पीछे झुकने वाले (बैक बैंड) आसन में पहले रीढ़ ऊपर की ओर लंबी कर पीछे झुकना ही सही तरीका है। गर्दन को कई लोग सामने ही रखे रहते हैं, जबकि वो रीढ़ की सीध में पीछे की ओर जानी चाहिए।

    नोट- आंखे बन्द न करें, इससे चक्कर आने की सम्भावना रहती है। कई लोग कलाई को मोड़ लेते हैं, जबकि यह पूरे हाथ के साथ सीध में रहनी चाहिए। अपनी सीमा से अधिक पीछे कभी नहीं झुकना चाहिए।

    3. पाद हस्त आसन (रेचक) – ऊॅं सूर्याय नमः स्वाधिष्ठान चक्र – हे संसार को जीवन देने वाले तेज, नमस्कार है

    दूसरी स्थिति से सांस छोड़ते हुये आगे झुकना चाहिए। ध्यान रहे कि आगे झुकने के समय आपकी रीढ़ (मेरूदण्ड) पूरी सीधी रहे। पूरी तरह नीचे आने से पहले आप का पूरा शरीर अंग्रेजी लेटर का L एल आकृति बन जाए। आगे अपनी सुविधानुसार झुके। हाथों को पैर के आस-पास रखें। गर्दन को सरलता को ढीला छोड़े। अब धीरे-घीरे सांस छोड़े और आगे की ओर झुकते हुये हाथों से पैरों की उंगलियों को छुएं। इस समय आपका सिर घुटनों से मिला होना चाहिए।

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    सावधानी

    आगे झुकते समय हम कमर से मुड़ने के स्थान पर पेट से मुड़ते हैं, जिससे रीढ़ की स्थिति (स्पाइन का एलाइमेन्ट) बिगड़ जाता है और रीढ़ की हड्डी टेढ़ी होने से लाभ तो नहीं मिलता, बल्कि रीढ़ की हड्डी पर अतिरिक्त दवाब पढ़ता है। अधिकांशतः लोग सिर को घुटने से साथ चिपकाने पर जोर देते हैं, जो सही नहीं है, उचित होगा कि नीचे झुकते समय रीढ़ और गर्दन को पैर या जमीन की ओर ज्यादा लम्बा करें, इससे कमर में किसी भी तरह की परेशानी से हम बच सकते हैं।

    नोट- घुटने या कमर में दर्द अथवा कम लचीलेपन की स्थिति में आगे झुकते हुये घुटने को थोड़े मोड़ने की स्थिति का ध्यान रखें। सांस को जितना अधिक देर तक छोड़ते जाएंगे, झुकना उतना ही आसान होगा और उड्यिान बंध यानी पेट और मूलबंध यानी गुदा द्वार का अंदर संकुचन जरूर करें। साथ में घुटने की टोपी को ऊपर की ओर खींच कर रखें।

    4. अश्व संचालन आसन (पूरक) ऊॅं भानवे नमः- आज्ञा चक्र-हे प्रदीप्त होने वाले प्रकाश पुज्जं, नमन है

    तीसरी स्थिति से अपने दाहिने पैर को सांस लेते हुये उचित दूर पर पीछे की ओर ले जाएं। दूरी कम होने से बाहरी जंघे पर खिंचाव का एहसास नहीं हो पायेगा। हथेलियां जमीन पर हों और बायां पैर दोनों हथेलियों के बीच इस तरह रखा हो कि बांये पैर का घुटना और एड़ी एक सीध में रह सके। पीछे के पॉंव का घुटना जमीन पर और पांव की अंगुलियां बाहर हो। दृष्टि सामने की ओर टिकी रहे। अगले राउंड में बांये पैर को पीछे ले जायें। इस तरह प्रत्येक राउंड में पैर की स्थिति को हमें बदलना होगा।

    सावधानी

    अधिकांशतः गलती इस स्थिति में होती है। अधिकतर साधक घुटने को एड़ी से काफी अधिक आगे कर रखते हैं। ऐसी स्थिति में जंघे की मांसपेशियों पर खिंचाव और उसके खुलने (ओपनिंग) से आप वंचित रह जाएंगे। पावं की उंगलियां भी कई साधक अंदर रखते हैं, बाहर रहने की स्थिति में खिंचाव ज्यादा होता है।

    नोट- घुटने की समस्या होने पर पांव का घुटना जमीन पर आप रखते हैं, वहां आराम लिए घुटने की कैप या फोल्ड किया हुआ कोई कपड़ा अथवा कुशन के ऊपर घुटने को रखें, घुटने को सीधे जमीन पर ना रखें।

    5. दंडासन (कुम्भक) ऊॅं खगाय नमः- पर्वत आसन, विशुद्ध चक्र- हे आकाश में भ्रमण करने वाले नमन है

    चौथी स्थिति से सांस को रोकते हुये अब दूसरे पैर को भी पीछे ले जायें। ध्यान रखें कि हमें सिर्फ पैर को पीछे ले जाना है, कंधे और शरीर पीछे की ओर न ले जायें। दंडासन में आपका कंधा और हथेली एक सीध में हो। कमर का हिस्सा भी कंधे के स्तर पर ऊपर उठा हो। नाभि को अंदर की ओर संकुचित रखें।

    सावधानियॉं

    कमर दर्द से पीड़ित लोग इस आसन को सावधानी पूर्वक करें। वे घुटने को नीचे रख संशोधित (मोडिफाइड) आसन कर सकते हैं। कलाई की तकलीफ वाले लोग इस आसन को छोड़ सकते हैं।

    6. अष्टांग नमस्कार (रेचक) ऊॅं पूष्णाय नमः-मणिपूरक चक्र-हे संसार के पोषण करने वाले नमन है

    हमारे शरीर की आठो अंगो के जमीन से स्पर्श होने के कारण इस स्थिति को हम अष्टांग नमस्कार के नाम से जानते हैं। दंडासन से सांस छोड़ते हुये पहले घुटने को सीधे जमीन पर रखें, फिर कोहनी को मोड़ते हुये छाती को दोनों हथेलियों के बीच रखें। मस्तक अथवा ठुड्डी आगे जमीन पर रखें। ध्यान रहें कि इस दौरान कोहनी हमेंशा शरीर से साथ चिपकी हुई हो।

    सावधानियॉं

    दंडासन से इस स्थिति में आते वक्त अधिकांश लोग कोहनी को फैलाकर नीच उतरते है, जो आगे कंधे की समस्या पैदा कर सकता है। हथेली की स्थिति ठीक छाती के बगल में रहनी चाहिए, जबकि कंधे के पास उसकी स्थिति गलत मानी जायेगी।

    नोट-कम़र दर्द या मोटापे की स्थिति में आप अष्टांग नमस्कार के स्थान पर साष्टांग नमस्कार की स्थिति में आएं तो बेहतर है। मतलब यह है कि उस स्थिति में सीधा जमीन पर छाती के बल लेट जाना उचित होगा। लेकिन हर स्थिति में कोहनी शरीर के साथ दोनों हथेली छाती के पास हों, चिपकी रहे न कि कंधे के आस-पास।

    7. भुजंगासन (पूरक) ऊॅं हिरण्यगर्भाय नमः – भुजंगासन, स्वाधिष्ठान चक्र-हे स्वर्णिम विश्वात्मा, नमन है

    छठी स्थिति में सांस लेते हुये अपने शरीर को आगे की ओर बढ़ाये जिससे नितम्ब का हिस्सा नीचे जमीन पर फ्लैट और पैर की अंगुलियां बाहर की ओर हो जायें। कोहनी को शरीर के साथ लगाते हुये सिर-छाती के हिस्से को भुजंगासन में आने के लिए ऊपर उठाएं। सिर और कंधे को पीछे की ओर ले जाएं और दृष्टि नासिक अर्थात नाक के अग्र हिस्से पर अथवा आकाश की ओर केन्द्रित करें।

    सावधानियॉं

    इस आसन में अधिकांशतः गलतियां देखने को मिलती हैं। कोहनी और पैर की अंगुलियों को बाहर रखना गलत स्थिति है, ऐसा करने से कमर पर दवाब की स्थिति बढ़ जायेगी। कई साधक हाथ को पूरा सीधा कर भुजंगासन में रहते है, ऐसा करने से आप इससे होने वाले लाभों से वंचित रह जाएंगे। हाथों के सीधे होने की स्थिति में हार्ट-लंग्स पर दवाब नहीं बढ़ेगा इससे हाथ मजबूत नहीं हो पाएंगे, बल्कि ऐसा करने से उल्टा कमर के नीचले हिस्से में दर्द की शिकायत शुरू हो जायेगी। कई साधक अनजाने में कंधे को ऊपर की ओर उठाकर रखते हैं, जबकि कंधे को नीचे सहज स्थिति में रहना चाहिए।

    नोट-स्लिप डिस्क खिसक जाने की स्थिति में अतिरिक्त सावधानी इस आसन में बरतनी चाहिए सरलता का ध्यान रखना आवश्यक है।

    8. पर्वतासन (रेचक) ऊॅं मरीचये नमः – विशुद्ध चक्र-हे रश्मियों के अधिपति, नमन है

    भुजंगासन से सांस छोड़ते हुये अपने नितंब और घुटने को ऊपर उठाएं और फिर पीछे की ओर इस तरह ले जाएं कि पूरा शरीर अंग्रेजी वर्णमाला के उलटे V वी आकार में आ जायें। हाथों को सीधा रखते हुये और कंधे को सहजता से दबाते हुये सिर को जमीन की ओर ढीला छोड़े। स्पाइन जितनी ज्यादा सरलता से लम्बी और सीधी हो अच्छा होगा। दोनों पैर को मिलाकर या नितंब जितनी चौड़ाई पर फैलाकर रखे।

    सावधानियॉं

    हाथों और पैरों के मध्य उचित दूरी का अभाव, जिससे आसन की वास्तविक स्थिति, स्टेªचिंग को हम महसूस नहीं कर पाते हैं। हाथों एवं पैरों की दूरी ना तो बहुत अधिक हो और ना ही कम। दोनों हाथों के मध्य कुछ साधक अधिक तो कुछ बहुत कम दूरी रखते हैं, जबकि ये दूरी कंधे की दूरी के बराबर होनी चाहिए। हाथ और कंधे एक सीध में होने चाहिए।

    नोट- कमर दर्द या रीढ़ में लचीलापन कम हो तो घुटने को थोड़ा मोड़कर इस स्थिति में रखें, ताकि कमर पर जोर ना आयें, इससे मांसपेशियों और रीढ़ (डिस्क) में आराम मिलेगा।

    9. अश्व संचालन आसन (पूरक) – ऊॅं आदित्याय नमः आज्ञा चक्र-हे जीवन रक्षक अदिति पुत्र, नमन है

    चौथी स्थिति में आप जिस पैर को लेकर पीछे गये थे, उसी पैर को सांस लेते हुये अश्व संचालन आसन में आयें। ऐसा करने से एक ही राउंड में दोनों पैरों का एक साथ स्टैªच हो जायेगें। सुविधा के लिए आठवीं स्थिति से दोनो घुटनों को पहले नीचे जमीन पर रखें, फिर दाहिने पैर को सांस लेते हुये आगे बढाएं और दोनों हथेलियों के बीच में रखें। पैर आगे लाने में कठिनाई की स्थिति लगने पर आप थोड़ी देर के लिए दाहिने हाथ को ऊपर हवा में रखें और दाहिने पैर को बगल रखने के पश्चात दाहिने हाथ को वापस उसी स्थिति में ले जायें। अधिक लचीलेपन की स्थिति में आप सीधे पैर को अश्व संचालन आसन की स्थिति में लाकर रख सकते हैं। बाकी चौथी स्थिति की तरह सभी अन्य बातों का ध्यान रखें।

    सावधानियॉं

    चौथी स्थिति में में दाहिने पैर लोग पीछे ले जाते है और नौंवी स्थिति के समय बॉयें पैर को वापसी में आगे ले आते हैं, इससे एक ही पैर में दोबारा स्टैªच होता है, दूसरे पैर के लिए अगले राउंड का इंतजार करना पड़ता है। चौथी स्थिति के लिए जो पैर पीछे ले जायें, नौवीं स्थिति में उसी पैर को वापस लायें।

    10. पाद हस्त आसन (रेचक) ऊॅं सवित्रे नमः-स्वाधिष्ठान चक्र-हे विश्व को उत्पन्न करने वाले नमन है

    नौवीं स्थिति से सांस छोड़ते हुये पीछे के पैर को उठायें और दोनों हाथों के बीच लायें। पैर लाने में असुविधा हो तो घुटने को जरूर मोड़कर रखें, ताकि कम लचीलापन होने के बावजूद दिक्कत न हों। दोनों पैरों को आपस में मिलाकर रखें और पेट की आंतरिक मांसपेशियों को थोड़ा संकुचित करते हुये आगे की ओर झुके।

    सावधानियॉं

    अधिकतर लोग सिर को घुटने क साथ चिपकाने पर जोर देते हैं, जो स्वाभाविक नहीं है, बेहतर हो हम नीचे झुकने पर रीढ़ और गर्दन को पैर या जमीन की ओर अधिक लम्बा करें। इस स्थिति में जोर बिल्कुल ना लगायें।

    11. हस्त उत्तान आसन (पूरक) ऊॅं ह्मैं अकार्य नमः – विशुद्धि चक्र-हे शक्तिमान को उत्पन्न करने वाले, नमन है

    दसवीें स्थिति से सांस लेते हुये दोनों हाथों को कंधे के बराबर दूरी रखते हुये ऊपर लें चलें। यहां यह ध्यान रखना है कि ऊपर आते हुये रीढ़ व कमर को बिल्कुल सीधा रखें। निगाह को हाथ की अंगुलियों पर केन्द्रित रखते हुये ऊपर उठें, फिर थोड़ा धनुषाकार में ऊपरी शरीर को पीछे मोड़े, छाती उभरी हुई रहे और गर्दन थोड़ा पीछे। बिल्कुल तीसरी स्थिति की तरह। सांस को जितना धीरे और लंबी और गहरी ले सकें लें।

    सावधानियॉं

    ऊपर उठने के समय स्पाइन कमर का झुका हुआ रहना। हाथों को जोड़कर ऊपर की ओर ले जाना, जबकि वो कंधे के बराबर खुली रहनी चाहिए। बाकी सावधानियां दूसरी स्थिति की तरह ही इसमें होती हैं।

    नोट-कमर पर स्पाइन की समस्या वाले साधक घुटने को मोड़कर ही ऊपर आयें।

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    12. प्रणामासन (रेचक) ऊॅं भास्कराय नमः – अनाहत चक्र-हे प्रकाश करने वाले, आत्मज्ञान के प्रेरक, नमन है

    याहरवीं स्थिति से ऊपरी शरीर और दोनों हाथों को सांस छोड़ते हुये थोड़ा आगे लाते शरीर के स्वाभाविक स्थिति पर पहुॅचे। दोनों हाथों को सामने से लाते हुये प्रणाम स्थिति में आयें। निगाह सामने हों, यहां से हाथों को नीचे सम स्थिति में लायें और इस तरह एक पूरा चक्र (राउंड) सूर्य नमस्कार का पूर्ण होता है। आप इस तरह से दूसरे कई चक्र का अभ्यास कर सकते हैं।

    सावधानियॉं

    हाथ को कई साधक बगल में ले जाते हैं, बाकी इसमें भी आम गललियां वहीं है जो पहली स्थिति में बताई गयी है

    नोट- उपरोक्त सभी आसन सूर्य नमस्कार का एक राउन्ड है।

    ध्यान रखने योग्य बातें

    • र्भवती महिलायें इस आसन को ना करें।
    • 8 वर्ष आयु से कम के लोग।
    • हर्निया और हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों को सूर्य नमस्कार नहीं करना चाहिए।
    • मासिक धर्म के समय में भी महिलाओं को सूर्य नमस्कार बहुत धीमे और कम संख्या में करना चाहिए और चाहें ना भी करें।
    • मेरूदण्ड की समस्या, ब्लड प्रेशर, हृदय दोष वाले व्यक्ति, हर्निया वाले व्यक्ति।
    • पीठ दर्द या रीढ़ (स्पाइन) की समस्या में सूर्य नमस्कार किसी योग्य शिक्षक की देख-रेख में ही मॉडिफाइड यानी संशोधित कर अभ्यास में लायें।
    • बहुत अधिक राउंड करने के चक्कर में ना पड़े।

    निष्कर्ष Conclusion

    स्वस्थ जीवन यापन करने के लिये सबसे अच्छा माध्यम योग है। योग न सिर्फ शरीर और मन को स्वस्थ रखने का काम करता है। बल्कि शरीर की अनेक बीमारियों को ठीक करने में भी मदद करता है। सूर्योदय से पूर्व जलवायु शुद्ध होती है और सूर्य की अल्ट्रावॉयलेट किरणें भी हानि नहीं पहुॅचाती। इसलिए सूर्य नमस्कार के लिये प्रातःकाल का समय ही उपयुक्त माना गया है।
    जो साधक प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करते हैं, वे दीर्घ आयु, त्रीव बुद्धि, बल और तेज को प्राप्त करते हैं। अधिकांश साधकों का यह सवाल उठता है कि सूर्य नमस्कार के कितने राउंड करना उचित है। प्रारम्भ में 4-5 राउंड ही काफी है (अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार)। आप अपनी क्षमता के अनुसार सूर्य नमस्कार का अभ्यास करें।
    जल्दी-जल्दी और अधिकर राउंड में किये गये सूर्य नमस्कार सूर्यनाड़ी को ज्यादा तेज कर हृदय गति और सांस की प्रणाली में गड़बड़ी पहुॅचा सकते है और उससे मिलने वाले लाभ की बजाय गैर जरूरी थकावट और नुकसान हो सकता है। ध्यान रखें कि संतुलत से ज्यादा कोई भी अभ्यास या कार्य से लाभ के स्थान पर नुकसान ही होता है। प्रतिदिन नियमित और निरन्तर, धीरे-धीरे किये जाने वाले अभ्यास से ही आप सूर्य नमस्कार के सम्पूर्ण लाभों से लाभान्वित हो पायेंगे।


    हमारे पास 24 घण्टे होते हैं। सवाल ये है कि क्या हम उन 24 घण्टों में अपने शरीर को 15 मिनट भी नहीं दे सकते।

    डिस्क्लेमर– यह लेख मात्र सामान्य जानकारी के लिये है। यह किसी भी तरह का दवा या इलाज का विकल्प नहीं है। अधिक जानकारी के लिये सदैव अपने चिकित्सक से परामर्श करें।

    इमेज आभार-कैनवा एवं गूगल

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    6 Comments

    1. निसंदेह बहुत उपयोगी जानकारी है। शब्दो का चयन और वाक्य विन्यास उत्तम है। कुछ चित्र और होते तो और अच्छा होता।

    2. सुन्दर और ज्ञानवर्धक लेख

    3. Bahut hi upyogi aur achche tarike se vivran aur tarika hai
      Excellent 👍👍 thanks for this nice information

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